कर्म का गान



उठो कर्म का गान करो
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अरुणोदय की स्वर्ण बेला।
लगा हुआ कर्मों का मेला।।

उदयाचल में स्वर गुंजित।
भाग्य कर्म रेखाएं पुंजित।।

तज आलस नींद से जागो।
स्वर्ण समय उठो आभागों।।

अभी उठो बिस्तर को छोड़ो।
काम से अपना नाता जोड़ो।।

जो जागा उसका भाग जगा।
सोया खुद ने खुद को ठगा।।

उठो तुम कर्म का गान करो।
पल भर भी ना विश्राम करो।।

कैलाश मंडलोई "कदंब"


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1 टिप्पणियाँ

Pammi singh'tripti' ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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