मैं आवाज लगाऊँगा....


मैं आवाज लगाऊँगा....
----------------------
जाग उठे 
सोई मानवता 
उठ खड़ी हो 
दिलों में क्रांति  
जम जाए शब्द 
जन-जन के मन में 
कुछ ऐसी बात रखूंगा 
कोई जागे या न जागे, 
मैं आवाज लगाऊँगा, 
अपना कवि धर्म निभाऊंगा। 
गर उठे भरोसा 
उगे शब्द झूठे  
उगाना छोड़ दे 
फसल उम्मीदों की 
नए शब्द बोऊँगा 
नई फसल उगाऊँगा 
मन में जन-जन के  
मैं भरोसा जगाऊंगा  
कोई जागे, या न जागे, 
मैं आवाज लगाऊँगा, 
अपना कवि धर्म निभाऊंगा।
लगेगी आग 
शब्दों से 
हृदय जल उठेंगे 
अश्रु जल बरसाऊंगा  
मैं अपने जज़्बातों से 
दिलों की आग बुझाऊंगा 
कोई जागे  या न जागे, 
मैं आवाज लगाऊँगा, 
मैं अपना कवि धर्म निभाऊंगा।
जागेंगे नींद से
टूटेंगे सपने 
काँच की तरह
नई कल्पनाएं
नए उन्मन, नए सपने 
मैं अपनी आँखों में जगाऊँगा 
उनके नाकामयाब सपनों का बोझ मैं 
अपने कांधों पर उठाऊंगा 
कोई जागे  या न जागे, 
मैं आवाज लगाऊँगा 
अपना कवि धर्म निभाऊंगा।
हिन्दू मुसलिम 
सिक्ख ईसाई
सबसे पहले मानव है 
मानवता ही धर्म है भाई
मानव का  हित हो जिसमें
इस हेतु है कलम चलाई
मैं अपनी बात रखूँगा, जन-जन तक पहुँचाऊंगा    
कोई जागे  या न जागे, 
मैं आवाज लगाऊँगा, 
मैं अपना कवि धर्म निभाऊंगा।
     कैलाश मंडलोई 'कदंब'


एक टिप्पणी भेजें

9 टिप्पणियाँ

Santosh sawner ने कहा…
उत्कृष्ट कृति। प्रत्येक व्यक्ति अपना धर्म इसी सिद्दत से निभाए तो क्या बात हो। अद्भूत लेखनी। कटु सत्य को उजागर करती हुई। साधुवाद आपको 'कदंब' जी।
Pammi singh'tripti' ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
!
जी बहुत बहुत धन्यवाद अवश्य आपकी लिंक पर उपस्थित रहेंगे सादर नमन
जी बहुत बहुत धन्यवाद सादर नमन
yashoda Agrawal ने कहा…
अच्छा लेखन
आभार
जी बहुत बहुत धन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.